श्याम सुन्दर सुतिहार
विराटनगर, श्रावण १९ गते

धर्मके हिसाबसे देखल जाय त सवसे पुरान हिन्दु धर्मके मानल जाय है । हिन्दु धर्मके अपने धार्मिक आर सांस्कृति है । हिन्दु धर्ममे वर्षेभरै विभिन्न किसिमके पर्व सव मनावल जाय है । ओकरामे से भाई–बहिन मिलके मनावैवला पवनी है ‘रक्षाबन्धन’ अर्थात नेपालमे जनय पूर्णिमा सेहो कहल जाय है । हिन्दु धर्म मानैवाला प्रत्येक घरमे भाई–बहिन मिलके आर धुमधामके साथ रक्षाबन्धन पवनी मनावल जाय है ।
रक्षाबन्धनके दिन जनै लगवेवाला सब बिहाने उइठके लद्दी, पोखैर, कुण्ड, तलाव, नहर लगायतके स्थानमे जाक नहाय–धुवाई कैरके गायके गोबर लके तुलसीके मोठके भी लिपपोत कैरके जौ, तिल, कुश लक ऋषितर्पणी कैरके विधी–विधानसे मन्त्र पढैके पुरान जनै खोइलके नयां जनै लगवैके करण ऐकरा जनै पूर्णिमा कहल जाय है ।
हिन्दु धर्म मानैवाला सब जायत जनै लगवै है जे लगवै है उ जनैके ब्रहमसूत्र अर्थात ज्ञानके धागा सेहो मानै है । जनै के रुपमे प्रयोग करैवाला धागामे पहिलका तीन धागामे ब्रह्मा, विष्णु आर महेश आर दोसरका तीन धागामे कर्म, उपासना आर ज्ञानके तीन योग रहल मानल जाय है । धर्मशास्त्र मे उल्लेख भेल अनुसार सत्युगमे दाव सव जव देवगनके खेदाइडके मारैके समयमे गुरु वृहस्पति रक्षा विधान तयार कैरके देवगनके बचाके आर वामन अवतार विष्णु राजा बलिके डोरी लक बाइनके बचन वद्ध कराक तीनो लोक लिएके धार्मिक कथा से सेहो रक्षाबन्धन जोडल है । वहिना रक्षावन्धनके दिन देह सुद्ध कैरके देवता, सप्तऋषि (काष्यप, अत्रि, भारद्धाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ आर विश्वामित्र) पितृ सबके नाममे तिल, कुश तर्पण करलाके कारण यी पवनीके ऋषितर्पणी के नामसे जानल जाय है । ज्ञान आर सफल जीवन मार्ग शिक्षा–दिक्षा दयवला ऋषिमुनी सवके सम्मानमे ऋषि तर्पणी करैके जनै धारण, पवित्र कार्य सम्पादन करल जाय है । अतिथी सत्कार, पितृ तर्पण, भूतवली, होम जयसन प्रतिदिन करैवाला पञ्च महायज्ञ कर्मके स्मरण करैवाला दिनके रुपमे भी ताकाधारी सव यी पवनी मनावै है ।
अर्थात सतयुग दानव सव से खेदाडल देवगणके गुरु वृहमस्पति रक्षा विधान तयार करल डोरीसे वलशाली राजा बली बानल गेल वहिना तोरो बान्वौ ऐकरा से तु सुरक्ष्ति बन, विचालत नै हो कहिके डोरी बाइधके बचावल पौरानिक कथा से रक्षाबन्धनके परम्परा शूरु भेल आइ भी ओतने प्रचलित है ।
जनैमे प्रयोग भेल धागाग्रन्थ आर शिखा ज्ञान आर जीवनके वारेमे सही मार्ग दर्शन मे लाइजायल सहयोग मिल है । यी सव कर्म करलासे व्यक्ति, देव ऋण, ऋणी ऋण र पितृ ऋणसे मुक्त हुवैके सेहो जनविश्वास है । जनै पूर्णिमाके दिन हातमे बाँधल रक्षाबन्धन सुकरतियामे गायपुजाके गायके नगडीमे बानहल से मरलाके वाद वैतरणी लद्दी पार हुवैके सेहो जनविश्वास है ।


भैया–बहिन के पवनी रक्षाबन्धन हिन्दु धर्मावलम्बी सवके प्रत्येक घरमे मनावैवाला एगो पवित्र पवनी है । रक्षाबन्धन दुईगो शब्द से जुडल शब्द है । यी पवनी श्रावन महिनाके शुक्ल पूर्णिमाके दिन हर्षोउल्लासके साथ मनावल जाय है । जनै पूर्णिमाके दिन ब्राह्मसव धागा लक घर घरमे जाक रक्षाके धागा बाइनक दक्षिणके रुपमे रुपिया, चामल, फलफूल दिवके सेहो चलन है ।
रक्षाबन्ध भाय–बहिनके आपसी माया, ममता आर स्नेहके रुपमे बहिन सव आपन भैयाके दीर्घायू आर सफल जीवनके कामना करैत वहिनके जीवनके सेहो रक्षाके वाचा करैत हातमे कलात्कक राखी बानल जाय है ।
रक्षाबन्धन पवनीमे हिन्दु धर्मालम्वी सव लगायत अन्य धार्मालम्बी सव भी उत्साके साथ सहभागी भक मनावल जाय है । रक्षावन्धनके दिन बहिन सव अपन भैयाके हातमे पवित्र धागाके रक्षा बाइधके लाल टिका लगाके मिठाइ लगायत ठिमा–मिठा परिकारसव सेहो खुवाव है । भैयासव भी बहिनके मिठा–मिठा पकवान खुवाके उपहारके स्वरुपम लत्ता–कपडा, रुपैया दक बहिनके उपर आवैवला सव संकटसे वचावैके समेत करै है । आर भैया सवभी वहिनके रक्षा करैके वचन के साथ उपहार दैके प्रचलन सेहो परापुर्वकाल से चलते आ रहल है ।
एक पौरानिक कथाके अनुसार देवराज इन्द्र आर दैत्यराज वृत मध्य १२ वर्ष तक भयकर युद्ध चलल इ युिद्धमे असुर सव देवता सवके उपर विजय प्राप्त करले रहल आर पराजीत देवगन धर्म आर संस्कार विहीन भक जीवनयापन करते रहल । अपन जीवन गौरव विहीन से देवराज इन्द्र बचल से मरना ही भला समैझके असुर से पुनः अन्तिम लडाईके संकल्प लैत श्रावन शुक्ल चतुर्दशीके दिन देव गुरु वृहस्पति एक दिन अगाडी इन्द्रके कल्याण आर विजय कामना हुवै के रक्षा विधान श्रावण मासके पूर्णिमाके शुभ मुहुर्तमे इन्द्रके हातमे रक्षाके बन्धन बाधेका थिए । त्स्पश्चात इन्द्रानी इन्द्रके हातमे रक्ष्प सूत्र बानलक आर असुर से विजय प्राप्त करलक ।
जेकर भावर्थ है मानव आफ्नो आसुरी वृतिके उपर विजय प्राप्त करैल चाहे त अपन धर्मपत्नीसे रक्षासुत्र बानना आवश्यक है । मन, बचन आर कर्म के पवित्र बनावके जरुरी है । एक दोसरका कथा के अनुसार यमदुत अपन बहिन यमुना संगे राखी बानैके समयमे कह है कि जे पवित्राके राखी बानत उ यमदुतके सजाय आर भय से मुक्त होतय । वहे से एखनियो रक्षा वन्धनके प्रचलन दिन प्रति दिन बढते जा रहल है ।
रक्षाबन्धनके एक धार्मिक उत्सव सेहो मानल जाय है । जेकर सम्वन जीवनके श्रेष्डता, निर्विकारिता से जुडल है । वहे से रक्षाबन्धनके विषतोक पवनी सेहो कहल जाय है ।
एखिनका आधुनिक युगमे सव लोग अपन सांसारिक बन्धन से छुटैल चाह है कयलकी इश्वरीय बन्धन काल्पनिक आर सुखदायी बन्धन है । रक्षाबन्धी भी एकरे प्रतिक है कैलकि हम सव अपन स्यम रक्षा करैके लेल पवित्रताके बन्धन मे बाधना आवश्यक है । इ बन्धन दशमी तक बाधल जाय है मनके दश विकार उपर जव तक विजय प्राप्त न होय है तब तक दशमी नय मनाव है । रक्षा वन्धनके पवित्र वन्धन तवतक वानन आवश्यक है जवतक पवित्रातके धारण आत्मिक स्थितिमे स्थित धारण न होजाय ।
रक्षाबन्धन मर्यादा आर आत्मा निग्रहसे मृत्यु उपर विजय प्राप्त करैवाला पवनी है । रक्षासु्त्रके वन्धन आर टिका यी पवनीके मुख्य विधान है । सूत्र आत्माके मार्यादा र संयमके प्रतिक है आर टिका आत्म स्वरुप स्थितिमे स्थित होयवला प्रतिक है । रक्षाबन्धनके सही अर्थ अपन आत्म स्थितिमे अचल, अडोल भके पवित्रताके पलन करैके है कायल कि पवित्रता सेह ि मृत्युपर विजय प्राप्त करल जाय है ।

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